BA Semester-2 - History - History of Medival India 1206-1757 AD - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-2 - इतिहास - मध्यकालीन भारत का इतिहास 1206-1757 ई. - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 - इतिहास - मध्यकालीन भारत का इतिहास 1206-1757 ई.

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2720
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बीए सेमेस्टर-2 - इतिहास - मध्यकालीन भारत का इतिहास 1206-1757 ई.

अध्याय - 2 
खिलजी

गुलाम वंश के अंतिम सुल्तान क्यूमर्स की हत्या करने के बाद जलालुद्दीन खिलजी सल्तनत की गद्दी पर आसीन हुआ और एक नये राजवंश की स्थापना (1290) की जो इतिहास में खिलजी वंश के नाम से जाना जाता है। खिलजी भी तुर्क जाति के ही थे। खिलजी वंश के काल में पहली बार भारतीय मुसलमानों को बड़े-बड़े प्रशासनिक पदों पर नियुक्त करने की परम्परा आरम्भ हुई, कुलीनता के स्थान पर प्रतिभा को महत्व दिया गया, राजनीतिक को धर्म से पृथक करने ( अलाउद्दीन खिलजी ) का प्रयास किया गया तथा अलाउद्दीन खिलजी के नेतृत्व में साम्राज्य विस्तार का एक नया दौर आरम्भ हुआ।

खिजली वंश में कुल चार शासक हुए ( जलालुद्दीन फिरोज खिलजी, अलाउद्दीन खिलजी, कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी व नासिरुद्दीन खुसरोशाह) जिनमें जलालुद्दीन खिलजी तथा अलाउद्दीन खिलजी ही सबसे महत्वपूर्ण थे। जलालुद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर तथा भिल्सा के विरुद्ध सैनिक अभियान किया। इसी के काल में अलाउद्दीन खिजली ने पहली बार देवगिरि अभियान किया। इस अभियान की सफलता से उत्साहित होकर अलाउद्दीन खिलजी सुल्तान बनने के लिए व्यग्र हो उठा। और अंततः कड़ा-मानिकपुर में अपने चाचा एवं श्वसुर जलालुद्दीन खिलजी की हत्या कर सुल्तान बन बैठा।

1296 ई0 में सल्तनत की गद्दी पर अलाउद्दीन खिलजी के राज्यारोहण के साथ ही सल्तनत के साम्राज्य विस्तार का दौर आरम्भ हुआ। आरम्भ में अलाउद्दीन को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। असंतुष्ट अमीर उसकी सत्ता को चुनौती दे रहे थे, मंगोलों के आक्रमण सीमावर्ती क्षेत्रों में हो रहे थे, पंजाब में खोखरो के विद्रोह जारी थे, और अनेक स्वतंत्र पड़ोसी राज्य (गुजरात, चित्तौड़, रणथम्भौर एवं मध्य भारत के अन्य राज्य) भी सल्तनत की सत्ता को चुनौती दे रहे थे। इन सभी राज्यों की विजय ही अलाउद्दीन की साम्राज्यवादी नीति का लक्ष्य थी। अलाउद्दीन ने सर्वप्रथम धन बांटकर एवं प्रश्रय देकर विरोधियों का मुंह बन्द किया, तत्पश्चात मंगोल समस्या का निराकरण किया और अंत में अपने विजयाभियानों को पूरा किया। अलाउद्दीन के बाद कुतुबुद्दीन मुबारह शाह व नासिरुद्दीन खुसरोशाह सुल्तान बने, जिनके काल की कोई विशेष उपलब्धि देखने को नहीं मिलती है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

दिल्ली सल्तनत में खिलजी वंश की स्थापना 'खिलजी क्रान्ति' के नाम से प्रसिद्ध है। खिलजियों ने भारतीय मुसलमानों को उच्च पदों पर नियुक्त करने की परम्परा आरम्भ की, कुलीनता की जगह प्रतिभा को महत्व दिया तथा राजनीति को धर्म से पृथक करने का प्रयास किया। इन्हीं कारणों से मोहम्मद हबीब ने खिलजी वंश की स्थापना को एक क्रान्ति की संज्ञा दी है। खिलजी भी तुर्क थे लेकिन अफगानिस्तान के खल्ज क्षेत्र में रहने के कारण एवं अफगानी परम्पराओं को अपनाने के कारण अफगान समझे जाते थे।

जलालुद्दीन खिजली (1290-1296 ई0)

  • जलालुद्दीन खिजली का राजनैतिक उत्कर्ष गुलाम वंश के अंतिम सुल्तान कैकुवाद के समय में आरम्भ हुआ। कैकुवाद ने जलालुद्दीन को समाना का सूबेदार तथा सर-ए-जहांदार के पद पर नियुक्त किया।
  • निजामुद्दीन की हत्या के बाद कैकूबाद ने जलालुद्दीन को समाना से बुलाकर बरन का सूबेदार तथा आरिज-ए-मुमालिक नियुक्त किया और शाइस्ता खां की उपाधि प्रदान की।
  • क्यूमर्स की हत्या के बाद जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने 13 जून 1290 ई० को कैकूबाद द्वारा बनवाये गये अपूर्ण किलोखरों के महल में अपना राज्यारोहण करवाया।
  • जलालुद्दीन दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था जिसकी आंतरिक नीति इसरो को प्रसन्न करने के सिद्धांत पर आधारित थी।
  • उसने तुर्को गैर तुर्को तथा भारतीय मुसलमानों को शासन में सम्मिलित कर प्रशासन को विस्तृत आधार प्रदान करने का प्रयास किया। उसके अनुसार, भारत का कोई राज्य सही अर्थों में इस्लामी नहीं हो सकता।
  • विद्रोहियों के प्रति जलालुद्दीन ने एक दुर्बल नीति अपनाई और कहा, 'मैं एक वृद्ध मुसलमान हूँ' और मुसलमानों का रक्त बहाने की मेरी आदत नहीं।"
  • 1290 ई0 में कड़ा-मानिकपुर के सूबेदार मलिक छज्जू ने विद्रोह कर, सुल्तान मुगीसुद्दीन की उपाधि धारण की तथा अपने नाम के सिक्के चलवाये लेकिन यह विद्रोह सफल न हो सका और दबा दिया गया सुल्तान ने मलिक छज्जू को माफ कर मुल्तान भेज दिया।
  • इसी के समय में ईरानी अमीर सीदी मौला को देशद्रोह के कारण हाथी के पैरो तले कुचलवाया गया था।
  • जलालुद्दीन के समय अब्दुल्ला के नेतृत्व में 1292 ई० में मंगोलों का आक्रमण हुआ लेकिन वे पराजित हो गये।
  • मंगोल नेता उलूग खां ने अपने 4000 समर्थकों के साथ इस्लाम धर्म स्वीकार कर भारत में रहने का निश्चय किया।
  • सुल्तान ने अपनी एक पुत्री का विवाह उलूग के साथ किया।
  • दिल्ली में बसे मंगोल नवीन मुसलमान कहलाए और वह स्थल आज की मंगोलपुरी के नाम से प्रसिद्ध है।
  • जलालुद्दीन के समय में ही अलाउद्दीन के नेतृत्व में मुसलमानों का दक्षिण भारत पर प्रथम आक्रमण हुआ जिसमें देवगिरि के शासक रामचन्द्र देव को पराजित किया।
  • देवगिरि अभियान में सफल होकर लौटे अपने भतीजे एवं दमाद अलाउद्दीन से मिलने जलालुद्दीन कड़ा-मानिकपुर गया जहाँ 19 जुलाई 1296 को अलाउद्दीन ने उसकी हत्या कर दी।

अलाउद्दीन खिलजी ( 1296-1316 ई0 )

  • अपने चाचा सुल्तान जलालुद्दीन की हत्या करने के बाद अलाउद्दीन खिलजी 1296 में सुल्तान बना।
  • अलाउद्दीन में स्वयं को कड़ा-मानिकपुर में ही सुल्तान घोषित कर दिया लेकिन उसने अपना राज्याभिषेक बलबन के लालमहल में करवाया।
  • खजाइनुल फुतूह में अमीर खुसरो ने अलाउद्दीन को विश्व का सुल्तान, पृथ्वी के शासकों का सुल्तान, युग का विजेता, और जनता का चरवाहा जैसी उपाधियों से विभूषित किया है। अलाउद्दीन के समकालीन अमीर खुसरो तथा परवर्ती ईसाई दोनों ने उसे एक भाग्यवादी व्यक्ति कहा है।
  • अलाउद्दीन का राजत्व सिद्धांत तीन बातों पर आधारित था— शासक की निरंकुशता, धर्म और राजनीति का पृथक्कीकरण तथा साम्राज्यवाद।
  • उसने खलीफा की सत्ता को मान्यता दी लेकिन प्रशासन में उसके हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया।
  • अलाउद्दीन ने यामनी - उल - खिलाफत ( खलीफा का नाइब) की उपाधि ग्रहण की थी।
  • बरनी के अनुसार अलाउद्दीन ने एक नये धर्म की स्थापना तथा विश्व विजय की योजना बनाई और सिकन्दर द्वितीय की उपाधि धारण की।
  • लेकिन अपने परामर्श दाता काजी अलाउल-मुल्क के सुझाव पट अपनी विश्व विजय की योजना त्याग दी।
  • अलाउद्दीन के काल में पहला विद्रोह नवीन मुसलमानों का हुआ जिसे नुसरत खां ने दबाया। इसके अतिरिक्त अकत खां, मलिक उमर, मंगू खान, हाजीमौला आदि ने भी विद्रोह किया लेकिन इन सभी विद्रोहों को सफलतापूर्वक दबा दिया गया।

राज्य में हुए इन विद्रोहों को देखते हुए, भविष्य में उसकी पुनरावृत्ति न हो इसलिए उसने चार अध्यादेश जारी किये-
(1) धनी व्यक्तियों की सम्पत्ति को जब्त करना,
(2) गुप्तचर विभाग का गठन,
(3) मद्य निषेध को लागू करना
(4) अमीरों के मेल-मिलाप एवं वैवाहिक सम्बन्धों पर प्रतिबन्ध।

  • दिल्ली सल्तनत में सर्वाधिक मंगोल आक्रमण ( 6 बार ) अलाउद्दीन खिलजी के काल में हुए।
  • पहला मंगोल आक्रमण 1297-98 में कादिर खां के नेतृत्व में हुआ तथा अंतिम आक्रमण 1306 में तीन सेनापतियों— काबुक, इकबाल मन्द तथा ताइबू के नेतृत्व में हुआ।
  • मंगोलों के आक्रमण से सुरक्षा के लिए अलाउद्दीन ने 1304 ई0 में सीरी दुर्ग का निर्माण करवाया।
  • मंगोलों से निपटने के लिए अलाउद्दीन ने रक्त और तलवार की नीति अपनाई।
  • अलाउद्दीन के उत्तर-भारत की विजय में उसके दो सेनापतियों उलूग खां तथा नुसरत खां ने भूमिका निभाई।
  • अलाउद्दीन का पहला सैन्याभियान 1297 में गुजरात पर हुआ। यहाँ का शासक रायकर्ण II. देवगिरि में रामचन्द्र देव के यहाँ शरण लिया। रायकर्ण की पत्नी कमला देवी से अलाउद्दीन ने विवाह कर लिया।
  • 1301 ई0 में अलाउद्दीन ने रणथम्भौर को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया।
  • 1303 में अलाउद्दीन ने राणा रत्न सिंह को हराकर चित्तौड़ को विजित किया जो अलाउद्दीन की एक नवीन विजय थी।
  • अलाउद्दीन की दक्षिण विजय का श्रेय उसके सेनापति मलिक काफूर बने है।
  • देवगिरि पर अलाउद्दीन खिजली का पहला आक्रमण जलालुद्दीन के काल में 1296 में हुआ था। इस आक्रमण से बाध्य होकर उसने एलिचपुर की आय अलाउद्दीन को भेजने का वादा किया था।
  • मलिक काफूर ने 1307-08 में देवगिरि पर आक्रमण किया तथा रामचन्द्र को बन्दी बनाकर अलाउद्दीन के पास भेज दिया। अलाउद्दीन ने रामचन्द्र को 'रायरायन' की उपाधि, स्वर्ण छत्र तथा नौसारी की जागीर देकर सम्मानित किया। 
  • मलिक काफूर ने 1309-10 में तेलंगाना की राजधानी वारंगल पर आक्रमण किया। यहाँ का शासक प्रतापरुद्र देव अलाउद्दीन की अधीनता स्वीकार कर लिया। उसी ने मलिक काफूर को कोहिनूर हीरा उपहार में दिया था।
  • 1311 ई0 में मालिक काफूर ने रामचन्द्र देव की सहायता से होयसल नरेश बीर बल्लाल तृत्तीय को पराजित किया।
  • 1311 में ही मलिक काफूर ने पाण्ड्य राज्य पर आक्रमण किया लेकिन वीर पाण्डय को वह पकड़ने में असफल रहा धन की दृष्टि से पाण्डय राज्य पर किया गया आक्रमण काफूर का सबसे सफल आक्रमण था।
  • बरनी के अनुसार अलाउद्दीन का साम्राज्य 11 प्रांतों में विभाजित था।
  • दिल्ली के सुल्तानों में अलाउद्दीन प्रथम सुल्तान था जिसने एक स्थायी केन्द्रीय सेना की स्थापना की।
  • फरिस्ता के अनुसार उसकी विशाल सेना में 4 लाख 75 हजार अश्वरोही थे।
  • अलाउद्दीन ने सैनिकों की हुलिया लिखने तथा घोड़ों को दागने की प्रथा आरम्भ की।
  • अलाउद्दीन पहला सुल्तान था जिसने सैनिकों को इक्ता के स्थान पर नकद वेतन देने की प्रथा आरम्भ की।
  • सेना की इकाइयों का विभाजन हजार, सौ और दस पर आधारित था, जो खानों, मालिकों, अमीरों, सिपहसलारों इत्यादि के अन्तर्गत थे।
  • दस हजार की सैनिक टुकड़ियों को तुमन कहा जाता था।
  • अलाउद्दीन के बाजार नियन्त्रण के विषय में विस्तृत जानकारी तारिख-ए-फिरोजशाही ( बरनी) से मिलती है। उसके अतिरिक्त अमीर खुसरो के खजाइनुल फुतूह, इस्लामी के
  • इब्नबतूता के रेहला से भी जानकारी मिलती है।
  • फुतूह सलातीन तथा बरनी के अनुसार अलाउद्दीन के बाजार नियंत्रण का उद्देश्य राजकोष पर अतिरिक्त बोझ डाले बिना सैनिक आवश्यकताओं को पुरा करना था।
  • अमीर खुसरो के अनुसार बाजार नियंत्रण का उद्देश्य प्रजा को राहत पहुंचाया था।
  • बाजार व्यवस्था की देख माल के लिए अलाउद्दीन ने दीवान-ए-रियारत' विभाग की स्थापना की तथा इस विभाग को मालिक याकूब के अधीन रखा। जबकि मलिक कबूल को शहनाया बाजार का अधीक्षक बनाया।

अलाउद्दीन ने मुख्यतः चार प्रकार के बाजार संगठित किये -
1. गल्ला बाजार
2. सराय-ए-दल
3. घोड़ो, दासो एवं मवेशियों का बाजार तथा
4 सामान्य बाजार।

  • गल्ला बाजार से संबंधित 8 नियम बनाये गये जबकि सराय-ए-दल से संबंधित 5 अधिनियम थे। सराय-ए-दल (न्याय का स्थान) निर्मित वस्तुओं तथा बाहर के प्रदेशों, अधीनस्थ राज्यों तथा विदेशों से आने वाले माल का बाजार था। विशेष रुप से यह सरकारी सहायता प्राप्त बाजार था। अलाउद्दीन ने अपने राजस्व सुधारों के अन्तर्गत सर्वप्रथम एक पृथक राजस्व विभाग- दीवान-ए- मुस्तखराज' की स्थापना की।
  • उसने मुकद्दमों, खूतों तथा चौधरियों के विशेषाधिकारों को छीन लिया।
  • अलाउद्दीन ने उपज का 50% भूमिकर के रूप में निश्चित किया जो सल्तनत काल में सर्वाधिक थी।
  • उसके काल में मसाहल भूमि मापन पहवति को अपनाया गया।
  • उस समय राजस्व नकद एवं अनाज दोनों के रूप में वसूला जाता था।
  • भूराजस्व कर के अतिरिक्त अलाउद्दीन घरो कर ( आवासकर) तथा चराई कर (दुधारू पशुओं पर ) भी वसूल किया।
  • अलाउद्दीन के समय में खुम्स के 4/5 भाग पर राज्य का अधिकार निश्चित किया गया।

 मुबारक शाह खिलजी (1316-1320 )

  • 1316 में अलाउद्दीन खिजली की मृत्यु के बाद शिहाबुद्दीन उमर सुल्तान बना। लेकिन कुछ ही समय बाद शिहाबुद्दीन को अपदस्थ कर उसका संरक्षक कुतुबुद्दीन मुबारक शाह सुल्तान बन गया।
  • उसके काल में अलाउद्दीन के सारे कठोर आदेशों को रद्द कर दिया गया। दिया गया।
  • उसने स्वयं को खलीफा घोषित किया तथा अल इमाम, उलइमाम, खिलाफत-उल-लह आदि उपाधियां ग्रहण की।
  • खुसरव शाह ने 1320 में मुबारक शाह की हत्या कर नासिरुद्दीन खुसरव शाह के नाम से सुल्तान बन गया।
  • खुसरव हिन्दू धर्म से परवर्तित मुसलमान था। उसने पैगम्बर के सेनापति की उपाधि ग्रहण की।
  • खुसरव के शत्रुरो ने उसके विरुद्ध 'इस्लमा का शत्रु' तथा 'इस्लाम खतरे' में है के नारे लगाये। सितम्बर 1320 में गाजी मलिक ने खुसरव की हत्या कर सुल्तान बना तथा एक नवीन राजवंश तुगलक वंश की स्थापना की।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय -1 तुर्क
  2. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  3. उत्तरमाला
  4. अध्याय - 2 खिलजी
  5. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  6. उत्तरमाला
  7. अध्याय - 3 तुगलक वंश
  8. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  9. उत्तरमाला
  10. अध्याय - 4 लोदी वंश
  11. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  12. उत्तरमाला
  13. अध्याय - 5 मुगल : बाबर, हूमायूँ, प्रशासन एवं भू-राजस्व व्यवस्था विशेष सन्दर्भ में शेरशाह का अन्तर्मन
  14. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  15. उत्तरमाला
  16. अध्याय - 6 अकबर से शाहजहाँ : मनसबदारी, राजपूत एवं महाराणा प्रताप के सम्बन्ध व धार्मिक नीति
  17. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  18. उत्तरमाला
  19. अध्याय - 7 औरंगजेब
  20. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  21. उत्तरमाला
  22. अध्याय - 8 शिवाजी के अधीन मराठाओं के उदय का संक्षिप्त परिचय
  23. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  24. उत्तरमाला
  25. अध्याय - 9 मुगलकाल में वास्तु एवं चित्रकला का विकास
  26. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  27. उत्तरमाला
  28. अध्याय - 10 भारत में सूफीवाद का विकास, भक्ति आन्दोलन एवं उत्तर भारत में सुदृढ़ीकरण
  29. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  30. उत्तरमाला

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